मंजु किशोर की कविताएँ कल्पना पर हिन्दी लेखक

Manju Kishoreमंजु (सिन्हा) किशोर ने दिल्ली महाविद्यालय के दौलतराम कालेज में हिन्दी पढ़ायी और कुछ वर्ष पहले सेवा निवृति पायी. 1968 में उनकी पाँच अन्य कवियत्रियों (उषा, कानन, अर्चना सिन्हा, प्रमिला शर्मा और कृष्णा चतुर्वेदी) के साथ मिल कर एक कविताओं की किताब छपी थी जिसका नाम था "छः X दस". उसी किताब से मंजु किशोर की कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं:

उगने वाली हर उल्लास भरी सुबह

उगने वाली

हर उल्लास भरी सुबह

जाने क्यों

एक थका मांदा सूरज लिए आती है.

जाने कितने देशों का व्यास

अपने गतिहीन पैरों में समेटे

वह सूरज

मेरे द्वार पर दम तोड़ देता है.

भीड़ भरी शामों का अकेलापन

किसी चुभने वाली समृति की तरह

मेरे कंधे पर हाथ रख देता है.

हर कहीं से मिले अंधेरे सी

यह वीरान रात

ज़िन्दगी पर अपने दाग छोड़ जाती है.

बरसों से

थके सूरज की मौत

अकेलपन का ग़लीज़ स्पर्श

और रात के दाग

इसी तरह मिल रहे हैं

क्या इसमें व्यतिक्रम नहीं होगा?

*****

हाशिया

हाशिया

यह ज़िन्दगी के पृष्ठ का

आज रंग गया है

क्योंकि

तुमने

विश्वास का एक अक्षर

उस पर चुपचाप लिख दिया था.

*****

दानी

दानी

तनिक अंजुरी बाँधो!

(मैं तुमसे होड़ नहीं करती)

थोड़ा शुभाशंसाओं का आलोक उसमें छोड़ दूं.

तुमने आज तक

मेरे आंचल के छोर में

कितनी आस्थाएँ

और कितने स्वप्न बाँध दिए हैं.

(यह प्रतिस्पर्द्धा नहीं है)

बस थोड़ा अश्रुभीना नेह ले लो

जिससे मैं

तुम्हें कुछ देने का गौरव पा सकूँ.

*****

कितना पागल है यह प्यार

कितना पागल है यह प्यार

योवन सा उन्मादी और बावला -

ऐसे व्यक्ति को दुलराता है

जिसने अपने हृदय में चट्टान बो दी है

और फ़िर प्रतीक्षा करता है

कि कब भोर के धुंधलके में

वह चट्टान फ़ूल उगल देगी

*****

विश्वास

विश्वास के जिस अभेद्य परकोटे में

मैंने अपनी अनास्था

और अविश्वास को कैद कर दिया था

उसमें मैंने स्वयं मार्ग बना दिए हैं

क्योंकि अंधेरी अनास्था ने

और उमस भरे अविश्वास ने

मेरे विश्वास को खण्डहर बना डाला है.

*****

जिन लोगों को रेता पर लिखे नाम

जिन लोगों के रेता पर लिखे नाम

यमुना का बेसब्र पानी धो गया था,

जिनके धूल भरे कदमों के निशान

ज़िन्दगी के बेख्वाब रास्ते मिटा गए थे

उन सब स्वप्नदर्शी लोगों की परछाईयाँ

रात के एकांत में पुकारती है

और व्यंग भरा वाण

मुझे छिन्न भिन्न करने को छोड़ कर

अंधेरा बन जाती हैं.

क्योंकि मैं सूरज को पाने की चाह में

वहीं रुकी भस्म हो गयी थी

और वे लोग

मेरी राख पर से चल

दूर -

बहुत दूर पहुँच गये हैं.

*****

हम

हम

जो एक दूसरे को चाहने के भ्रम में

अपने आस पास कैक्टस बो बैठे थे

अपने ही कांटों से बिंध गये हैं.

हम

जो अपने ही हाथों को थाम कर

दूसरे किन्हीं हाथों से भागे थे

इन स्पर्शों को घिनौना कहते हैं.

शायद प्यार का एहसास

दुनिया - से कट जाने पर

और स्पर्शों के बहुत अधिक

परिचित हो जाने पर

मर जाता है.

*****

नयी पीढ़ी को

तुम

जो नए सूरज की राह

खून से सींच कर

हरा करना चाहते हो.

तुम

जो अपने हर सपने का

बारूद बिछा कर

स्वागत करना चाहते हो.

शायद स्वयं

उस हत्यारे सूरज

और झुलसे हुए सपनों से

डर जाओगे.

*****

समानान्तर

खींच दी थी लक्ष्मण रेखा

उस दिन

तुमने अपने और मेरे बीच

खुद को दूर सीमान्त कह कर लौटा दिया था

आज तुम

उस रेखा को नकारते हो

खुद को सीमान्त नहीं कहते हो

(पर मैं, शायद तुम्हें नहीं ज्ञात)

सीमान्त पर खड़ी

कब की जड़ हो चुकी हूँ.

*****

कहानी भटके हुए सपनों की

बहुत दिन पहले

(सुनते हैं)

टीले के उस पार वाले घर में

सपना देखने वाले लोग रहा करते थे.

एक दिन

ढेर से सपने सहेज कर

सब कुछ बिसार कर

सो गए.

तभी बड़ी ज़ोर से

खुली हुई खिड़की की राह

आँधी एक घुस आई

और आज तक

गली गली राह राह

सपना देखने वाले वे लोग

अपने भटक गये सपनों को

खोज रहे हैं.

*****

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