रवीन्द्र कालिया की "स्मृतियों की जन्मपत्री" सेओमप्रकाश दीपक के पत्र

"जन"

७ गुरुद्वारा रकाबगंज रोड, नई दिल्ली

२७ जून १९६६

प्रिय भाई, आप का पत्र पा कर बड़ी खुशी हुई। कई कारणों से। आपने विषय बहुत अच्छा चुना है। कुछ जोखिम उठा कर मैंने घोषित भी कर दिया है। अगर तत्काल लिख सकें तो अगस्त अंक में ही आ जाये।

आप की लम्बी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा। मेरे लेखों में भी मसीहाई अन्दाज़ आता जा रहा है, यह कुछ चिन्ता की बात है क्योंकि मैंने इससे हमेशा बचने की कोशिश की है। अगर कहीं संकेत करें कि कहाँ तो सोचने का मौका मिले। इतना जरूर है कि आदमी जब कभी अकेला और प्रभावहीन होता है, तो भी उसका स्वर ऐसा हो सकता है जो मसीहाई लगे। बहरहाल।

आप से मेरा एक अनुरोध है। समकालीन लेखन पर दूसरे तीसरे महीने क्या आप हमारे लिए एक समीक्षात्मक टिप्पड़ीं लिख सकते हैं?

ममता जी से मेरा परिचय नहीं है, लेकिन उनके दृष्टिकोण में जो सादगी की हद तक प्रत्यक्षता है, उसका मैं बहुत दिनों से कायल हूँ - उस वक्त से जब उसमें सादगी ही नहीं मासूमियत भी थी। कुछ उनसे भी बेगार कराना चाहूँगा। कभी लिखूँगा उनको खत लेकिन अभी आपके मार्फत सिर्फ इतना ही।

आप का,

ओमप्रकाश दीपक

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