ओमप्रकाश दीपक का लेखन कल्पना का हिन्दी लेखन जगत
स्मरण : ओम प्रकाश दीपक
कारवाँ क्यों रुका चलते चलते, केशव जाधव
क्रांतिकारियों का कारँवा 25 मार्च को एक झटके से रुका जब यह खबर फैली कि ओमप्रकाश दीपक अब नहीं रहे. दिल और दिमाग इसको मानने के लिए तैयार नहीं है कि इस गम्भीर विचारक की आवाज हम कभी नहीं सुन सकेंगे.
5, 6, 7 मार्च को मुसलसिल उनसे भेंट होती रही. निर्दलीय युवा आंदोलन का संयोजक बनने से इन्कार करते हुए उन्होंने कहा था कि संस्थाँए ही संयोजक के तौर पर काम करें. वार्त्ता में उनके झँझोड़ देने वाले लेख हम कई वर्षों से पढ़ रहे थे. लगभग एक वर्ष से वह बिहार आंदोलन में घुलमिल गये थे और अपने खासढ़ंग से लोहियावाद का मतलब लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा था कि हर 15 रोज को आन्ध्र प्रदेश में आंदोलन की स्थिति पर एक रपट उन्हें भेजूँ. 25 तारिख को मैंने यह रपट तैयार की यह न जानते हुए कि जिसको भेजना था, वह अब नहीं रहा. सारे देश के समाजवादियों के लिए यह ऐसा सदमा है कि उसको पूरा करना मुश्किल होगा. उनकी पत्नी और बच्चों को युवा पोराटम की ओर से हार्दिक संवेदना.
चौरंगी वार्त्ता के चिट्ठी पत्री से
ओम प्रकाश दीपक के असामयिक निधन से हम सबको गहरा आघात लगा. हम स्तब्ध रह गये. वह समाजवादी आंदोलन के आधार स्तम्भ थे. लोहिया के शिष्यों में उनका विशिष्ट स्थान था. उनका सम्पादन, लेखन और राजनीतिक कर्म, उनकी बहुमुखी प्रतिभा का द्योतक था. उनकी कथनी और करनी में फरक कर पाना मुश्किल है. लोहिया के निधन के बाद इतनी अल्पायु में उनका निधन समाजवादियों के ऊपर एक और बज्रपात है.
मुरलीधर शर्मा, प्रकाश नारायण सिंह, प्रभाकर सिंह, भुवनेश्वर शर्मा, साजन वसानी, नवल किशोर मेहरोत्रा, रमेश मिश्र, रावेल सिंह अरोरा, कु. अंजू, म.प्र.
दीपक जी की मृत्यु ने एकदम हतप्रभ कर दिया है. निर्दलीय कार्यकर्ताओं के शिविर में २४ मार्च को मैं उनसे मिला था. मैंने उन्हें अमृतसर में शिविर लगाने के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि वह जयप्रकाश से मिल कर कार्यक्रम तय करेंगे. उनकी मृत्यु से वर्तमान जनान्दोलन तथा उसके संगठन को जबरदस्त धक्का लगा है.
भवानी शंकर, जयपुर
ओम प्रकाश दीपक के निधन से देश ने एक सही समाजवादी लेखक खो दिया. अब हमें वे सारी चीज़ें कैसे पढ़ने को मिलेंगी, जो वह लिखा करते थे. दीपक जी के न रहने से हम वंचित हो गये हैं.
हरीश अडयालकर, नागपुर
दीपक जी से ढ़ाई तीन साल पहले वार्त्ता दफ्तर में हमारा परिचय हुआ था. हमसे उनका परिचय कराया गया तो उन्होंने कहा कि मैं इन्हें जानता हूँ. हमने पूछा "कैसे" तो उन्होंने कहा, "आप लोग वार्त्ता में लिखते जो रहते हैं." हमारे लिए यह एक नयी बात थी क्योंकि बड़े लेखक हमारे जैसे लोगों को अगर भूले भटके जानते भी होते तो यही जताते कि नहीं जानते. पहले दिन का उनका खुला और प्रेमपूर्ण व्यवहार हमें मुग्ध कर गया. हम दोनों ने अनजाने में ही उन्हें अपना आदमी मानना शुरु कर दिया था. उनकी मृत्यु से हमने एक ऐसे व्यक्त्ति को खो दिया जिसकी ओर हम ताकते रहते थे.
समुद्री देवी, गंगाप्रसाद, नैहाटी
विरोध की राजनीति में ओमप्रकाश दीपक जैसे प्रखर, तेजस्वी और निर्भीक पत्रकार नहीं मिलेंगे. ऐसे समय उनका न रहना एक ऐसी क्षति है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता.
राजकुमार झवेरी, इन्दौर
वार्त्ता 28 अप्रैल से ओमप्रकाश दीपक की मुत्यु का समाचार मिला. ऐसे साथी की मुत्यु बांगला देश की भी बहुत बड़ी क्षति है. बांगला देश के मुक्त्ति संग्राम के दिनों में अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह हर कुछ झेलने को तैयार थे. बांगला देश के आज़ाद होते ही अपनी आँखों से सब कुछ देखने के लिए वह तुरंत ढ़ाका पहुँचे. जो भी उनसे मिला उनकी संवेदना और समझ का कायल हुआ. डा. कमाल हुसैन, बांगला देश के मौजूदा विदेश मंत्री, ने दीपक की मुझ से बहुत प्रशंसा की. दिनेश दास गुप्त के नाम उनके अंतिम पत्र से ही जाहिर है कि बांगला देश की तरक्की के लिए वह कितने व्यग्र और चिंतित. उनके साथ बिताये एक एक बातें याद आती हैं.
पुलिन दे,चटगांव, बांगला देश