अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा का लेखन व कविताएँ - जाती बरसात का इंद्रधनुष

जाती बरसात का इंद्रधनुष

मेरी मुट्ठी में पसीजती

मेरी चिड़िया की

नन्ही हथेली

पंख सी फड़क उठी.

जाती बरसात की संझा.

विशाल एक भुजा सा

इन्द्रधनुष उगा मेरी छत पर

आकाश उसमें बंधा.

पिछली किसी स्मृति के

चटकीले रंगों में उमगा

सधा.

किसे याद करता है

जाती बरसात की संझा का

पनियाला आकाश ?

मेरी कविता के कागज पर

उसने आँक दी है

एक तस्वीर.

अब उसे रंगने की तैयारी है.

धीरे धीरे धुल गया इन्द्रधनुष

रंगबिरंगे कागज की नाव सा

पानी में घुल गया रंग पिघले

हुए चाव सा आकाश में

सैलाब उमड़ आया. जाती बरसात की

संझा का फीका और सांवला इन्द्रधनुष

मेरे थके हए माथे पर

झुक आया. मेरी नन्ही चिड़िया की

आँखों के मुग्ध विस्मय में

रंगो का ज्वार

लहराया.

सहसा वह दौड़ उठी उड़ान सी.

समेटने हैं रंग. अभी

उसे भरनी है जो तस्वीर जो

मेरी कविता के कागज पर

उसने आंक दी है.

मेरी पसीजती हथेली

उसकी मुट्ठी में

पंख सी फड़क उठी.

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