अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा का लेखन
अर्चना जी दिल्ली विश्वविद्यालय के मिराडाँ कालेज में हिन्दी पढ़ाती
थीं
(1944 -16 फरवरी 2019). इसके अलावा वह हिन्दी की जानी मानी पत्रिका हँस
तथा कथादेश के सम्पादन में भी बहुत समय तक सहयोगी रही थीं. उनके लेखन के
बारे में राकेश बिहारी ने एक आलेख में इन शब्दों के साथ जिक्र किया:
"उल्लेखनीय है कि इक्कीसवीं सदी के पहले वर्ष के प्रथम तीन महीने में
राजेन्द्र यादव ने हंस को ‘अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य’ शीर्षक के
साथ स्त्री रचनाशीलता पर केन्द्रित किया। इन अंकों का सम्पादन तब अर्चना
वर्मा ने किया था। यदि सिर्फ कहानियों और आत्मकथ्य की ही बात करें तो उन
अंकों में मन्नू भण्डारी, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा, सुधा अरोड़ा,
मैत्रेयी पुष्पा, कृष्णा अग्निहोत्री, दीपक शर्मा, सुशीला टाकभौंरे,
उर्मिला शिरीष , जया जादवानी, पूनम सिंह, नीलाक्षी सिंह, वंदना राग, कविता
आदि सहित तीन पीढ़ियों की तीस से ज्यादा कहानीकार शामिल थीं। अर्चना वर्मा
के संपादकीय के साथ-साथ प्रभा खेतान, मृणाल पांडे, अनामिका, अभय कुमार
दुबे, सुधीश पचौरी, समरेन्द्र सिंह, अरविन्द जैन आदि के लेखों ने उस अंक
में स्त्री सरोकारों को एक सुदृढ़ वैचारिक आधार भी दिया था। नई सदी की
शुरुआत में एक स्त्री रचनाकार को हंस का विशेष संपदान सौंपने और स्त्री
विशेषांकों की वैचारिकी में पुरुष लेखकों को भी शामिल किए जाने के भी अपने
निहितार्थ हैं।"
कल्पना मे प्रस्तुत हैं अर्चना वर्मा की कुछ कवितायें व लेखन.
कवितायें
कुछ अन्य कवितायें जो कि दो कविता संग्रहों से ली गयीं हैं. पहला कविता संग्रह है 1981 में अक्षर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "कुछ दूर तक" और दूसरा कविता संग्रह है 1993 में वाणीं प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "लौटा है विजेता".
दर्शक दीर्घा में नया साल - (1 जनवरी 2014)
आलेख
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