अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा का लेखन
दर्शक दीर्घा में नया साल
चक्कर मेँ चलती है धरती
शुरू को आखिर में
आखिर को शुरू में लपेटती
सपने मेँ किसी ने देखा था साँप
अपनी पूँछ को निगलता हुआ
और यूँ शून्य का जन्म हुआ
या शायद ग़लत मुझे याद है कहानी
थी तो किसी सृजन की
पर शून्य के जन्म की नहीं
कोई और था सवाल
उसके समाधान मेँ शून्य की ज़रूरत थी
सपना जिसने देखा, समाधान ढूँढा था
दर्ज है कहीं उस वैज्ञानिक का नाम भी
मुझको मालूम नहीं
माफ़ है मुझे,
मैं विज्ञान की छात्रा नहीं।
बात तो यह थी कि
चक्कर में चलती है धरती
चक्कर की नाप का निशान
जहाँ भी लगा लो वही से शुरू
आज भी शुरू का निशान वही
नया वर्ष
यह केवल दो हजार चौदहवाँ चक्कर
नहीं पृथ्वी का शुरू जो आज
नाप के निशान के जन्म का दिन है।
तो अगले चक्कर पर चलो निकलें
सरगर्मी चालू भविष्य अन्तरिक्ष में
पृथ्वी प्रतीक्षा मेँ आकुल भविष्य को
लोक कर वर्तमान गढ़ने को।
अगला चक्कर है,
साल नया अपना अपना
सबको गढ़ना है, काल की माटी ले हाथों में
अगले भविष्य मेँ बढ़ना है।
नये सृजन का नया साल सबको शुभ हो।
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