अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा का लेखन
आदिम पहचान पहेली
यह जो पहेली है
इसके स्याह सफ़ेद में कोई नहीं जिम्मा मेरा
पहचान के प्रश्न पर
नितान्त अमौलिक यह प्रस्तावना
दर्शन के गलियारों में
सदियों से
चक्कर काटती
चलती चली आई है मेरी सदी तक
जहाँ इसे कविता के सिवाय
कहीं और शरण नहीं ।
क्योंकि बाकी तो हो चुका निपटारा
पहचान के प्रश्नों का ।
जनजातगणना में।
भूमिका अब बहुत हुई
सुन लो पहेली भी
सुकरात ने बनाया था
जहाज एक, टूट गया।
टूटे हुए टुकड़ों को जोड़ कर
फिर से गढ़ा प्लेटो ने
अब वह बताओ तो,
प्लेटो का जहाज है याकि सुकरात का,
या फिर ऐसा हुआ, दोनो ने बनाए थे
दो जहाज अलग अलग
दोनो ही टूट गये
कुछ टुकड़े इसमें कुछ उसमें से लेकर
तीसरे किसी ने बनाया जहाज जो
वह बोलो किसका है?
पूछ ही सकती हूँ पहेली बस,
उत्तर मेँ आशंका है ऐसा कुछ सुनने की
प्लेटो सुकरात यहाँ का यथार्थ नहीं,
विदेशी प्रभाव, जाओ,
गोष्ठी सेमिनार में निपटाओ
वसुधैव कुटुम्बकम का गाना
ग्लोबल किसी मंच पर गाओ।
जीवन को विचार मेँ
विचार को दर्शन में
ना ही उलझाओ।
या शायद यह भी हो उत्तर कि
हमें कहाँ मालूम था
प्लेटो सुकरात बनाते थे जहाज भी,
चलाते भी थे क्या़? हवा का? या पानी का?
बनाते भी रहे हों तो
कहाँ है जहाज अब? अब तो बाकी है
उत्तर-अधिकार का सवाल सिर्फ़, हल करो
प्लेटो या सुकरात या तीसरा कोई और वह
जहाज के टुकड़ों के सिवाय
और क्या क्या छोड़ गया?
तोड़ कर जहाज को निकालो अब
टुकड़े अलग अलग
जिनके वे दादा परदादा थे, लकड़-सकड़
उनको पहचानो
जो जिसके हिस्से का वह उसको सौंप दो
ऐसे निपटारा अगर संभव न हो सके
तो आओ फिर लड़ जाएँ, जूझ लें
जितने सब खेत रहें उतना ही अच्छा
बचे रहे लोगों का हिस्सा बढ़ जाएगा
जो जितना जीत ले, उसका कहलाएगा।
जहाज तो जा ही चुका
हिस्सा तो रह जाएगा।
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