अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा का लेखन
शोक गीत
फ़ूलों में फ़ूट कर
गाती है लता
पतझड़ का शोकगीत
और तुम कहते हो
वसंत है.
फ़ूटने के बाद बस
फ़ूल ही दिखता है
या थरथराती हुई टहनी पर
थिरकती हुई कोंपल.
ऐठंते हुए रेशों को छेद कर
भेद कर सुन्न हुई शिराओं को
ठिठक कर रह गयी थी जो चीख अनसुनी
छाल की सतह के ठीक नीचे
फूटने के पहले ही
गीत बन जाती है
और तुम कहते हो
वसंत है.
तुम्हारी दुनिया में
मौसम से डरती हैं चीजें
अक्सर बदल लेती हैं
नाम.
रोना और गाना तो
पहले भी
बहुत अलग नहीं थे यहाँ
अब तुम क्या जानों
उस आग का अंजाम
जो पहले पानी में पिघलती है
फ़िर खिलती है
और तुम देख कर भी
पहचान नहीं पाते
यहाँ आग है.
फ़ूल को देख कर
बस पानी तक जाते हो
वहीं ठिठक जाते हो
मंत्र की तरह जपते हुए -
आग आग आग.
उस दिन क्या करोगे तुम
जल्दी ही जो आने को है
तुम्हारी दुनिया में ?
जब मौसम के डर से
चीजों की शक्ल भी बदल जायेगी
तब भी क्या पानी पर
ठिठके रह जाओगे ? या फ़िर
यह गुत्थी तुमको सुलझाएगी ?
तुम भी तब
फ़ूलों के फूटने का जिक्र करके
सुनाओगे आग की दास्तान
और लता की कथा को दोहराओगे.
तब तक लता अकेली है.
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